Wednesday 21 September 2011

कलम में खून भर के लिखते हैं, तो आज भी इन्कलाब लिखते हैं

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खो गये कहाँ आज गजल कहने वाले ,
पत्थर  की दीवारों को ताजमहल कहने वाले,
कब्र में दफना कर या फिर चिता को  आग लगाकर ,
और सो जाते हैं चैन से  यहाँ मौत  को जिन्दगी का  हमसफ़र कहने  वाले

हर रात खौफ में सोता है यहाँ सन्नाटा
और   दिल को बहलाते हैं   इसे  शुकून  भरा शहर  कहने वाले ,

मारते देखा मैंने उन्हें ही  अपनी संतानों को इज्जत के नाम पर.
और इज्जत कि बात करने लगे गैरों कि  आबरू पे नज़र रखने वाले ..

डर लगता है आज सच्चाई के नाम पे लड़ने वालों को
यूँ तो आज भी रखते हैं अपने  पहलु में  खंजर रखने वाले ..

हर चीज दिखेगी अपनी तुम  अपनी नज़र से देखो तो ,
कभी नज़र को बदल तो लो हर चीज पे बुरी नज़र रखने वाले ..

जीते हैं वो भी जो सोते हैं यहाँ भूखे नंगे
कभी नज़र उनपे भी करो  अपनी  झोली में सारा शहर रखने वाले ..

लिखने को आज भी वो उनके  लबों को गुलाब लिखते हैं
और जवानी को चढ़ता  हुआ शबाब लिखते हैं ..

तुम्हे क्या खबर को जिन्हें हासिल   नही मुहब्बत
वहीं दूसरों के लिए मुहब्बत की  किताब लिखते हैं ..

वो आज भी लिखते हैं तो परदे का हुश्न नुमाया होता है
और नापाक मस्ती को वो रात में  मसला हुआ गुलाब लिखते हैं

तुम्हे खबर  नही कि  आज भी लिखते हैं तो उठता है कोई जलजला यहाँ
और कलम में खून भर के लिखते हैं तो आज भी इन्कलाब लिखते हैं ,

खो गये हों कहाँ  ऐ चाँद को महबूब कहने वालों
कह दो महबूब से कि करना हमारा  तुम इन्तजार
बस आजकल हम इतिहास की एक नई किताब लिखते हैं ,
जिस खंजर पे मौत लिखते थे तुम से दूर होने के नाम पर
आजकल उसी खंजर पे हम देश के दुश्मनों का हिसाब  लिखते हैं


गर आये मौत तो तुम आना मेरी जनाजे पे
और कहना खुश होकर कि मजिल को गये देश के नाम सफ़र करने वाले
तुम्हारे चेहरे को चाँद  कहेंगे हम , जब  तुम हमसे मिलने आओगी
अगर  कतरा अपने खून का इस देश के तुम नाम कर जाओगी .....


राजीव कुमार पाण्डेय
from my collection "Desh Ke Khatir "
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