वो हमे देख के मुस्कुराते हैं अब भी थोडा-थोडा ,
और हम ये सोच के रह जाते हैं कि दिल क्यूँ तोडा,
जो सीने से लगा करते थे दौड़ के आकर ,
वो दूर हुए क्यूँ और आखिर क्यूँ मुह मोड़ा,
लगता है मुझको भी अब कुछ-कुछ और थोडा-थोडा ,
कि उसने नही मैंने ही उसका दिल तोडा,
मुझे पता ना था की वो ख्वाहिस -ए- जिस्म लेके आते थे ,
हम तो बेवजह उनकी आँखों में डूब जाते थे ,
अब वो दूर हैं तो महसूस होता है थोडा थोडा
कि ख्वाहिस-ए-जिस्म कि उनकी मैंने क्यूँ तोडा
उनकी होठों कि प्यास क्यूँ ना मैंने महसूस किया
बे आबरू होने कि उनकी चाहत को मैंने क्यूँ छोड़ा ????????
दिल आज अब करता है मेरा थोडा-थोडा,
कि वो लबों पे लब रखे और मै बाँहों में भरूं उसको ,
और रात बीते चुपके चुपके , धीर धीरे और थोडा-थोडा ..
From my lover's poem collection " Tere Liye "
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