Sunday 16 October 2011

वक़्त को ही वक़्त से डरते देखा है ...

वक़्त का आप क्या कहेंगे मिजाज ,
हमने वक़्त आने पे वक़्त को बदलते देखा है ,
कहकहों के गूंज जो हुआ करते थे महफ़िलों की शान ,
उन कहकहों की गूंज को  अश्कों में बदलते देखा है /


इन्सान भी देखें मैंने कुछ भगवान से बढ़कर ,
तो कुछ इंसानों को मैंने इंसानियत को कुचलते देखा है ,
कुछ को देखा है मैंने हीरों को भी फेंकते हुए पत्थरों की तरह , 
तो कुछ को चंद सिक्कों के लिए भी नियत बदलते देखा है /


किसी को अपनों  के लिए फूलों पे भी चलने से  डरते देखा है मैंने ,
तो किसी को  गैरों के लिए  खंजर पे भी चलते देखा है ,
अपनों को अपना और गैरों को गैर कहने से अब डरता हूँ मै ,
जब से बारात को जनाजे के मंजर में बदलते देखा है /


जिन्दगी आग का दरिया है गर तब भी चलना होगा , 
जैसे सर्कस के मदारी को आग पे चलते देखा है ,
कैसे कहें की अब  उन्हें जिन्दगी की समझ हो गयी है ,
जिन्हें अब बच्चों  के खिलौनों के लिए मचलते देखा है /

बदला है वक़्त , बदला है मौसम और बदले हैं दिन और रात भी ,
तभी तो कांपते रूहों के दिलों को भी अब जलते  देखा है ,
वक़्त की बात ही तो है कि  जो रखवाली करते हैं दिन  में ,
 उन पहरेदारों को रात  में मुजरिमों के साथ में चलते देखा है ,


अब तो डर लगता है खुदा और भगवान से भी मुझको ,
 जब से मौलवियों को टोपी और दाढ़ी बदलते देखा है ,
जबसे देखा है मैंने शराबखाने से पंडितों को निकलते हुए ,
और कुछ  साधुओं को तवायफों के साथ में चलते देखा है ,


महंगाई कि मार से इस कदर मारे  हैं  बहु-बेटियों कि जलाने  वाले, 
कि अब ट्रेनों को उनके गले के ऊपर से निकलते  देखा है,
कुछ को देखा है मैंने तेजाब के बदले में खुद को गिरवी रखते हुए , 
तो कुछ को पेट्रोल  को अपने खून से बदलते देखा है , 


किसे कहें बेईमान अब तो यही सोचना पड़ता है ,
जब से ईमान  के सौदे में ईमान  को ही ईमान बदलते देखा है ,
 सूरज भी मोम कि तरह   पिघलता हुआ नजर आता है अब, 
 और चाँद को भी आजकल   आग उगलते देखा है ,


सोचता हूँ क्या जानवरों से भी बदतर क्या हो गया है आदमी ,
जब से  मैंने गिद्धों को कभी आदमी की लाशों पे नही उतरते देखा है,
पूजने को दिल करता है इन चील-कौओं को भी अब ,
जब से आदमियों को एक दुसरे का मांस कुतरते देखा है /



कुछ इस कदर मैंने वक़्त को बदलते देखा है ,
कि वक़्त को ही वक़्त से डरते देखा है ,
ये दुनिया है इसकी फितरत नही बदलती  "राजीव" !
ये कह कर कलम को भी लिखने से मुकरते  देखा है /

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