Saturday 10 September 2011

दुश्मन की तरह

हम  एक   फूल  हैं   नाज  ऐ गुलशन   की  तरह    
जो  महकते  हैं  आँगन  को    भी  उपवन  की  तरह
कहते  हैं  सब  की  मै  तेरा  होता  ही   कौन   हूँ

हम  बसाते  हैं  उन्हें   दिल  मै  धड़कन  की  तरह 

जब  आता  है  कोई  , तो  बहार   आ  जाती  है  जिन्दगी  मै 
पर   बीत  जाती  है  वह  भी  बचपन  की  तरह 
किसी  ने  फेंका  था  लकडी  समझ  कर  सड़कों  पर 
किस  ने  उठा   माथे  से   लगाया   था   चन्दन  की  तरह
कांपते  देखा  किसी   ने  मुझे  तो  उढ़ाया     चादर 
कोई  आया  तो  उसे  लपेट  गया  कफ़न  की  तरह 
किसी  ने  पूछा  कालिख  क्यूँ  लगाया   है  अपने  चेहरे   पर 
मेने  तो  आँखों  मै  लगाया  था   उसे  अंजन  की  तरह 
लोग  कहते  हैं  की  हमे  आदमी  की  पहचान  है  नही 
हम  हर  चेहरे  को  देखते  हैं   दर्पण  की  तरह 
हम  से    तो  ना   जाने  लोग   क्यूँ  लड़ते  हैं  रोज 
हम  भूल  जाते     हैं   छोटी  सी  अनबन    की  तरह 

जरा  मेरे  सीने  पर  निशान  ‘ ऐ   खंजर   तो   देखो

ये  आपसे  पूछती  हैं  शायद   ‘

उस दिन  क्यूँ  मारा  था  आपने  राजीव  को  दुश्मन  की  तरह …  
 

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