कौन कहता है की आज हम परेशान बहुत हैं.
हमारी हसरतों को तोड़ने वाले वैसे इन्सान बहुत हैं,
हमने हर किसी की ठोकर को सीने से लगाया है .
वैसे सीने से लगाने वाले भी इन्सान बहुत हैं,
किसको कहें अपना और किसको कहें गैर,
वैसे अपनों से ज्यादा गैरों के एहसान बहुत हैं ,
वो मुस्कुरा के मिलते हैं और सीने से लग जाते हैं .
पर फिर भी लगता है दूरियां हमारे दरम्यान बहुत हैं,
हमारी हर गजल को वो अश्कों का सामान कहते हैं ,
पर गजल की हर रदीफ़ में मेरे अरमान बहुत हैं ,
वो दूर होते हैं और हमारा दिल नही लगता .
वैसे दिल लगाने के लिए तो सामान बहुत हैं ,
वो चाँद हैं ऐसा तो मैंने हर शख्स से सुना था .
कहने को तो यूँ उनके लिए आसमान बहुत हैं ,
झोंका हवा का आया और दिल ये खंडहर हुआ ,
वैसे तो आने को तो आते रोज ही तूफान बहुत हैं
उनसे लबों की आरजू की हिफाजत नही होती
वैसे उनसे कहने वाले भी बेजुबान बहुत हैं ,,
ऐ "माहिर " तू लिखता है हसरत से इस कदर
तुम्हे खबर नही ऐसे हसरतों को लिए जनाजे और शमशान बहुत हैं ......
राजीव कुमार पाण्डेय "माहिर "
Sir....aap to chha gaye...kamaal ki gazal likhi h aapne.
ReplyDeletewah............good thinking but excellent way of expression..........dil ko bhi "sone" ka bana dala.....
ReplyDeletewah!!! sir , kya khoob likha hai .....kash hum ye sunn bhe paate aap se...
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