Wednesday 21 September 2011

सरदार भगत सिंह के आत्मा की आवाज

एक दिन कलम ने आके चुपके से मुझसे ये राज खोला ,

कि रात को भगत सिंह ने सपने में आकर उससे बोला,

कहाँ गया वो मेरा इन्कलाब कहाँ गया वो बसंती चोला ?

कहाँ गया मेरा फेंका हुआ, मेरे बम का वो गोला ?


आत्मा ने भगत के आकर कहा , ये देख के हम बहुत शर्मिंदा हैं,

कि देश देखो आज जल रहा है,और जवान यहाँ अभी भी जिन्दा हैं ??


देख के वो रो पड़ा इस देश की अंधी जवानी ,

क्या हुआ इस देश को जहाँ खून बहा था जैसे हो पानी ,


खो गया लगता जवान आज जैसे शराब में ,

खो गया आदतों में उन्ही , जो आते हैं खराब में ,


कीमतें कितनी चुकाई थी हमने, ये तो सब ही जानते हैं

तो फिर इस देश को हम आज , क्यूँ नही अपना मानते हैं ?


देश के संसद पे आके वो फेंक के बम जाते हैं ,

और खुदगर्जी में हम सब उन्हें अपना मेहमां बनाते हैं ,

भूल गये हो क्या नारा तुम अब इन्कलाब का ???

जो पत्थरों के बदले में भी थमाते हो फुल तुम गुलाब का ?


मानने को मान लेता मानना गर होता उसे ,

जान लेता हमारे इरादे गर जानना होता उसे ,


आँखों में आंसू आ गया, देख के अब ये जमाना ,

लगता है आज बर्बाद अब , हमको अपना फांसी लगाना ,


ऐ जवां तुम जाग जाओ तुम्हे देश ये बचाना होगा ,

आज आजाद और भगत बन के तुम्हे ही आगे आना होगा


ऐ जवां तुम्हे नहीं खबर ,कि जब-जब चुप हम हो जाते हैं

देश के दुश्मन हमे तब-तब, नपुंसक कह- कह कर के बुलाते हैं


उठो और लिख दो आज फिर से, कुछ और कहानियाँ ,

कह दो जिन्दा हैं अभी हम और सोयी हैं नही जवानियाँ,


गर लगी हो जवानी में, जंग, तो हमसे तुम ये बताओ ,

या खून में उबाल हो ना , तो भी बस हमसे सुनाओ


एक बार फिर से हम इस मिटटी के लाल बन के आयंगे ,

एक बार इस देश को अपनों के ही गुलामी से हम बचायेंगे ,

नारा इन्कलाब का हम फिर से आज लगायेंगे ..


पर ये सवाल हम आप से फिर भी बार-बार दुहराएंगे

कि आखिर कब तक ?? आखिर कब तक ?

इस देश के जवां कमजोर और बुझदिल कहलाते जायंगे.....

इसको बचाने खातिर कब, तक भगत सिंह और आजाद यहाँ पर आयंगे ???


सर्वाधिकार सुरक्षित @राजीव कुमार पाण्डेय ( द्वारा पूर्वप्रकाशित )

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