लोग इस कदर से अब इस शहर -ए - नामुराद से गिला करते हैं ....
कि मोमबतियों के उजाले में महबूब से मिला करते हैं ...
रिश्तों की दरारें या दरारों में है रिश्ता ,ये समझ नही आता ....
हर रिश्तों को तो अब लोग वक़्त का पैबंद लगा कर सिला करते हैं .......
कि मोमबतियों के उजाले में महबूब से मिला करते हैं ...
रिश्तों की दरारें या दरारों में है रिश्ता ,ये समझ नही आता ....
हर रिश्तों को तो अब लोग वक़्त का पैबंद लगा कर सिला करते हैं .......
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