सोचा मैंने की तेरे होठो पे एक गजल लिखूं
कोई हसींन तो कोई नाजनीन कहे ,
तुम्हे देखु तो लगे की तुम्हे खिलता हुआ कमल लिखु ,
सोचता हू तुझे मैं बया करू कैसे ,
बेदाग हसीं को चाँद मैं कहू कैसे
यू तो जिन्दगी बिताता हूँ तेरे ख्यालो में
अगर खुदा पूछे तो जिन्दगी को भी मैं एक पल लिखू
हर कोई तुम्हारे आने की आहट का इंतजार करे
तुम इंकार करो पर वो बार बार इजहार करे
चाहत तो हम भी रखते हैं आप के दीदार ए नूर का
इन्सान हैं पर आरजू रखते हैं जन्नत ए हूर का
सोचता हू की दिल की आवाज सुनाऊ कैसे
अपनी जबान को मूहब्बत का साज बनाऊ कैसे
इसलिए सोचा की तेरे हुस्न पर ही कोई गीत या गजल लिखूँ,
और उस गजल को ही अपने चाहत का ताजमहल लिखूं
कोई हसींन तो कोई नाजनीन कहे ,
तुम्हे देखु तो लगे की तुम्हे खिलता हुआ कमल लिखु ,
सोचता हू तुझे मैं बया करू कैसे ,
बेदाग हसीं को चाँद मैं कहू कैसे
यू तो जिन्दगी बिताता हूँ तेरे ख्यालो में
अगर खुदा पूछे तो जिन्दगी को भी मैं एक पल लिखू
हर कोई तुम्हारे आने की आहट का इंतजार करे
तुम इंकार करो पर वो बार बार इजहार करे
चाहत तो हम भी रखते हैं आप के दीदार ए नूर का
इन्सान हैं पर आरजू रखते हैं जन्नत ए हूर का
सोचता हू की दिल की आवाज सुनाऊ कैसे
अपनी जबान को मूहब्बत का साज बनाऊ कैसे
इसलिए सोचा की तेरे हुस्न पर ही कोई गीत या गजल लिखूँ,
और उस गजल को ही अपने चाहत का ताजमहल लिखूं
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