Saturday 10 September 2011

ए ताजमहल पे आने वालों

ए ताजमहल पे आने वालों ,
जरा हमे याद तुम कर लेते ,
गर हाथ हमारे होते तो ,
महबूब को बाँहों में भर लेते ,
माना शहंशाह था वो जो ,
वो इश्क किसी से करता था ,
अपनी बेगम कि चाहत में ,
वो दिलो जान से मरता था,
हम अपनी मुहब्बत के खातिर ,
अपनी जान लुटा देते ,
गर हात हमारे होते तो ,
रोज दो चार ताज बना देते,
पर शहंशाह था वो जो,
शायद हमारे इश्क से डरता था,
हर दिल रखता है एक मुमताज़ यहाँ ,
फिर क्यूँ वो बेवजह इश्क का दम भरता था,
दामल को छूने कि ख्वाहिस थी जिन हाथों को ,
उन हाथों को कटवा डाला ,
उसने ताज बना कर के ,
कितनों के इश्क का मजाक उड़ा डाला ,
गर आज होते हम इस दुनिया में,
तो दुनिया को हम ये दिखा देते ,
इश्क में ताज बनवाना जरूरी नही ,
सारी दुनिया को ये सिखा देते ,
गर हाथ हमारे होते तो रोज दो- चार ताज बना देते !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

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