Saturday 10 September 2011

नजर

नजर कि नजर में जो आते हैं
लाखों में एक वे ही नजर आते हैं
लगी है यह भीड़ नजर कि मगर
एक ही नज़ारे बार बार नजर आते हैं ,
बेठे थे हम कि मिल जाये नजर एक बार
बार बार वे नजर से गुजर जाते हैं ,
देखते हैं यह हम नजारे हजार
सब नज़ारे नजर में ही रह जाते हैं
कह नही पते अपनी दास्ताँ ऐ जिगर
होने वाला नही है उनपे कोई असर
जिगर यह टुकडों में बिखर जाते हैं
साकी ना उठाना नजर बार बार
रोज लाखों के नजर यह उतर जाते हैं
खो ना जाये नजर इस नजर कि भीड़ में
चली जाये ना मैना वापस नीद में
एक नजर ने किया लाखों को घायल मगर
राह चलते उठती थी फिर भी लाखो नजर
लाज से नीची होती थी उनकी नजर
मेरी तबाही का सबब बनी उनकी नजर
तबाही का ना हुआ उनपे कोई असर
नजरें तरसी थी दो आंसू के खातिर मगर
उठ ही ना पाई मुझ पर उनकी नजर
एक तरफ था मेरे जनाजे का मंजर
उनके घर हो रहा था शहनाई का असर
छोड़ दुनिया को मई जा रहा था मगर
जा रही थी वो छोड़ अपने बाबुल का घर.....

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